बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 दर्शनशास्त्र
प्रश्न- प्रकृति तथा पुरुष का अर्थ तथा सम्बन्ध बताइए।
उत्तर -
प्रकृति तथा पुरुष में सम्बन्ध
(Relationship between Nature and Purusa)
सांख्य दर्शन के अनुसार, प्रकृति और पुरुष दोनों मौलिक तत्व हैं। प्रकृति अचेतन है और पुरुष चेतन | दोनों के संयोग से संसार का निर्माण होता है। सांख्य दर्शन के अनुसार, जिस प्रकार विचार का प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है, उसी प्रकार प्रकृति का प्रभाव पुरुष पर पड़ता है। विचार के प्रभाव से शरीर शरीर की क्रियाओं में उथल-पुथल मचती है तथा सारा शरीर क्रियाशील हो जाता है, उसी प्रकार पुरुष के प्रभाव से प्रकृति में गति उत्पन्न होती है। प्रकृति अपने तीन गुण सत्व, रज तथा तम के कारण पुरुष के प्रभाव को बढ़ाती है। प्रकृति को ऐसे चालक की आवश्यकता होती है जो स्वयं स्थिर और गति रहित हो परन्तु दूसरों में गति उत्पन्न कर सके, ऐसा चालक पुरुष है। पुरुष के कारण प्रकृति के गुणों में उथल-पुथल मचती है तथा वह एक-दूसरे पर अधिकार जमाने लगते हैं। पुरुष अपने उस कार्य से संसार को चलाता है जो कार्य स्वयं ही एक क्रिया नहीं है। परन्तु प्रश्न उठता है कि जब पुरुष व प्रकृति का, स्वरूप एक-दूसरे के विरोधी हैं तो उनमें संयोग कैसे होता है। इसके लिए सांख्य दर्शन में चुम्बक तथा लोहे का उदाहरण दिया गया है। प्रकृति तथा पुरुष दोनों एक-दूसरे के संयोग से संसार का निर्माण करते हैं। प्रकृति ज्ञात होने के कारण पुरुष की सहायता लेती है और पुरुष कवैल्य अथवा अपना वास्तविक, स्वरूप पहचानने के लिए प्रकृति की तरफ मुड़ता है।
पुरुष और प्रकृति के झुकाव को लेकर चुम्बक व लोहे की बात कही जाती है अर्थात् चुम्बक लोहे को अपनी तरफ खींचती है जिसके कारण लोहे में गति आ जाती है तथा उसकी अवस्था में परिवर्तन होता है। परन्तु लोहे और चुम्बक की बात पुरुष और प्रकृति के सम्बन्ध में कैसे कही जा सकती है। पुरुष आत्मा के रूप में निर्जीव है तो प्रकृति जड़ पदार्थों के रूप में निर्जीव। अतः दो निर्जिव और अचेतन पदार्थों के सम्बन्ध में जो बात कही जाती है उसे प्रकृति व पुरुष के विषय में नहीं कहना चाहिए।
सांख्य दर्शन का पूरा विकासवाद प्रकृति और पुरुष के संयोग पर ही निर्भर करता है। दोनों के संयोग में त्रुटियाँ भले ही क्यों न हो परन्तु सम्पूर्ण सांख्य दर्शन का यही आधार है। इसी कारण डॉ. राधाकृष्णन ने कहा, "सम्पूर्ण सांख्य दर्शन में प्रकृति और पुरुष के सम्बन्ध की समस्या ही सबसे अधिक अचम्भित स्थान है।'
ॐ पुरुष का उद्देश्य देखना है और प्रकृति का उद्देश्य 'दिखाना'। पुरुष चेतन है व प्रकृति अचेतन। दोनों का स्वरूप भिन्न है। केवल अविवेक तथा अज्ञानता के कारण पुरुष प्रकृति के साथ मिलता है। सांख्य दर्शन के अनुसार, सृष्टि का निर्माण प्रकृति तथा पुरुष के संयोग से होता है। यह ईश्वरवाद को नहीं मानता। प्रकृति का विकास 24 पदार्थों पर निर्भर करता है इसमें पहला स्थान बुद्धि का है, दूसरा स्थान अहंकार का है। अहंकार के बहुत से प्रभेद होते हैं जैसे- पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ और मन, उसके बाद पाँच तन्मात्र (Five Potential Element) होते हैं। जिनसे पाँच महाभूत (Five Gross Physical Elements) की उत्पत्ति होती है। इस प्रकार प्रकृति + बुद्धि + अहंकार + मन + पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ + पाँच कर्मेन्द्रियाँ + तन्मात्र + पंच महाभूत तथा कुल मिलाकर 24 पदार्थ होते हैं। पुरुष के अलावा शेष पदार्थ प्रकृति की ही रूप है उनकी सहायता निर्माण के लिए ली जाती है।
अहंकार के तीन भेद होते हैं-
1. सात्विक अहंकार,
2. राजस या तैजस अहंकार,
3. तामस या भूतादि अहंकार।
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- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में भारतीय तथा पाश्चात्य दृष्टिकोणों की व्याख्या कीजिए।
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- प्रश्न- चार्वाक दर्शन में प्रमाण विचारों का अर्थ बताइए तथा साधनों का वर्णन कीजिए।
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